तीख़ी पर मीठी है अभी,
ले ख़बर सबकी वो नबी,
गाफ़िल फिर भी हैं सभी,
तो फिर ये ख़ता क्या है ।
आ जाती है उसकी सदां,
पास ग़र थोड़ी सी वफ़ा,
देखा पलट कर ना कभी,
तो फिर ये वफ़ा क्या है ।
ज़रा सा लेता नहीं दम,
दर्द अब करता है सितम,
ग़र सबब नहीं जो जफ़ा,
तो फिर और बता क्या है ।
पता मेरे पिया की गली,
पड़े यहाँ गफ़लत में सभी,
इस अँधेरे में क्या है सही,
मौला अब तो बता क्या है ।
' रवीन्द्र '
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