अजन्मे का जन्म,
अनन्त का आगमन,
असंभव है उसका,
विश्व से परिगमन ।
गुँजित हैं दिशायें,
पाञ्चजन्य निनाद,
वाणी-गीत सत्य से,
कण -कण अनुनाद ।
है रूप - माधुर्य पर,
परा शक्ति आवरण,
हो दर्श तभी जब,
भक्ति अनन्याचरण ।
चित्त में होता जब,
मलिनता आभास,
तभी हो कृष्ण गमन,
और चेतनता ह्वास ।
केशव हरे हे माधव,
हरो हृदय - विकार,
हो स्रवत सर्व उर,
प्रेम रस अमृत अपार ।
परम सत्य का हो,
जब साक्षात आकार,
तब जन्मो हर उर,
हे कृष्ण विश्व आधार ।
' रवीन्द्र '
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