'लावा' - ग़ज़ल संग्रह का विमोचन
द्वारा
श्री जावेद अख्तर
भारतीय विद्या भवन, मुंबई.
'कुछ विचार मेरे'
व्यास नाम अब सुने ना कोए,
वाल्मीकि भी अब विस्मृत होए,
'भाव' का चिंतन करे ना कोए,
सब विधि बस मनोरंजन होए.
धर्म कलि का सच्चा होए,
बिक्री हेतु अब लेखन होए,
प्रिय लगे श्रोता को मोहे ,
श्रेयहीन सी कविता सोहे.
वाणी वेद की ना जाने कोए,
ज्ञान बिना सब पंडित होए,
वेद ही शाश्वत सत्य कहलाये,
अर्थ जावेद का शाश्वत होए,
सत्य, संघर्ष का ईमान दिखाया,
गंभीर चिंतन से उसे नियराया,
हल्का फुल्का सत्य का 'लावा'
जिसने लिखा 'जावेद' कहलावा.
जनाब अख्तर साहब को मेरा सलाम,
'रवीन्द्र'
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