Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कुदरत

 

कोने से ढलके हैं उन छलकी आँखों के,
बेबसी के आँसू हैं किसी का कहर नहीं ।

 

तरक्की कौम की है कुदरत के दम से,
बे-परवाह निज़ाम से कोई गिला नहीं ।

 

मौसम का मिजाज़ है मेहमाँ की तरह,
इन्तेज़ामात की तेरे कभी परवाह नहीं ।

 

क़तरा क़तरा करते रहे किनारा जिनसे,
हश्र फर्ज़चोरी का, ख़ता कुदरत की नहीं।

 

तू नहीं है कहीं, ये होगा उनको यकीन,
औरों के यकीं पे मुझे आता ऐतबार नहीं ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

 


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