ना होते, फेरे लफ्ज़ों के,
न जाल, महीन शब्दों के,
संवाद होता सरल कितना,
जीवन भी मधुमय होता ।
.... क्या होता जो यूँ होता ।
मूक होता स्नेह निमंत्रण,
हृदय से भी होता श्रवण,
माध्यम होती हर धड़कन,
सार्थ पलक का गिरना होता ।
.... क्या होता जो यूँ होता ।
कहा तुम्हारा न मैं सुनता,
अधरों का ना श्रम होता,
भाव प्रेम बहता अनवरत,
ना शब्दों का भ्रम रहता ।
.... क्या होता जो यूँ होता ।
' रवीन्द्र '
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