Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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' लिख लें

 


  • ' गहराई '
    वो कोई और होंगे जो भंवर में साहिल तलाशते हैं,
    हम तो टकरा के भंवर से , उसकी गहराई नापते है.

 

 

क़यामत सा तेरा जलवा, तौबा उसपे ये कातिल सी अदा,
है ख़ूबसूरत ये रंगे महफ़िल, बताओ तो सही इसका पता.

 

  • ' हाल '
    क्यों पूछते हो हर बार कि क्या हाल है,
    तेरी रय्यत में भला क्या कोई बे-हाल है.

 

 

  • 'ना जाने क्यूँ '
    शराब मैं पीता नहीं, जाहिर है कि पिलाता भी नहीं,
    फिर भी ना जाने क्यूँ , पैमाना भर जाते हैं लोग.

 

  • ' लिख लें '
    पास किसके वक़्त इतना कि तेरा फ़साना सुन ले,
    तो क्यों ना इस फ़साने को, लिए खुद के लिख लें.

 

  • 'उस्ताद'
    ढूंढता फिर रहा मगर , मिलता नहीं अब कहीं निशां,
    सख्त लहज़े में हुनर नवाज़ा, उस्ताद ऐसा अब कहाँ.

 

तेरे कूचे से जब हो के गुज़रे,
क्यूँ न तेरे दर को छूके निकले,
बे-वफ़ाई न दस्तूरे - दर तेरा ,
हमीं गाफ़िल- ए- वफ़ा निकले।

 

उम्र तमाम गुज़री , अहसास तब हुआ हासिल,
नज़र का धोखा फखत, यहाँ कोई नहीं मंजिल।

 

  • ' निशान '

    चले जाना मगर निशाँ छोड़ जाना ,
    रहने को औरों के, मकां छोड़ जाना ।

 

  • ' ख़्वाब '

    हर बार ख़्वाब तोड़ कर ही तूने सजा दी,
    ख्वाबे- खुदगर्जी देखने की जब भी ख़ता की ।

 

  • ' अचरज '

    कश्ती भँवर में नहीं डूबी, माँझी नये सँभाल लेते हैं,
    छोड़ गये जो बीच धार, यूँ ही अचरज बयाँ करते हैं।

 

  • ' शिकायत '

    उनको है शिकायत हमसे कि ख़्वाबों में नहीं आते,
    कैसे कहें उनसे कि उनके ख़्वाब ही तो हमें सताते।

 

कश्ती को हर बार साहिल पे पाया,
भरोसे पर तेरे जब भी छोड़ आया ।

 

 

 

 

 

 

 

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