वात्सल्य की गंगा,
आँखों से बहती है,
जीवन भर साधना,
हर दुःख सहती है ।
कर्म ही आराधना,
मातृत्व ही अभीष्ट,
सर्व श्रेष्ठ ही बनना,
' माँ ' यही कहती है ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
वात्सल्य की गंगा,
आँखों से बहती है,
जीवन भर साधना,
हर दुःख सहती है ।
कर्म ही आराधना,
मातृत्व ही अभीष्ट,
सर्व श्रेष्ठ ही बनना,
' माँ ' यही कहती है ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY