( भक्ति भाव )
तुम मेरे मन की ख़ुशी,
तुम मेरे प्रिय प्राण हो,
नाम तेरा तुझ से बड़ा,
मन ये मनका होने लगा ।
नज़र हुई जादू विशेष,
कृपा बरसती है अशेष,
स्पर्श की एक चाह में,
मन ये मनका होने लगा ।
स्पंदित हो हर साँस पे,
एक छुअन की आस से,
चूम कर किसी नाम को,
मन ये मनका होने लगा ।
मन को अपने साध लूँ,
नुपुर की तरह बाँध लूँ ,
बंध नाम की पगडोर से,
मन ये मनका होने लगा ।
नाम ही तेरा स्वरुप है,
भक्ति का सर्वश्रृंगार है,
इस रुप मंजरी में जड़ा,
मन ये मनका होने लगा ।
' रवीन्द्र '
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