Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मनका

 

( भक्ति भाव )

 

तुम मेरे मन की ख़ुशी,
तुम मेरे प्रिय प्राण हो,
नाम तेरा तुझ से बड़ा,
मन ये मनका होने लगा ।

 

नज़र हुई जादू विशेष,
कृपा बरसती है अशेष,
स्पर्श की एक चाह में,
मन ये मनका होने लगा ।

 

स्पंदित हो हर साँस पे,
एक छुअन की आस से,
चूम कर किसी नाम को,
मन ये मनका होने लगा ।

 

मन को अपने साध लूँ,
नुपुर की तरह बाँध लूँ ,
बंध नाम की पगडोर से,
मन ये मनका होने लगा ।

 

नाम ही तेरा स्वरुप है,
भक्ति का सर्वश्रृंगार है,
इस रुप मंजरी में जड़ा,
मन ये मनका होने लगा ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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