करीब हो मेरी, यादों की अफ़ज़ाई में,
मिलन के बीच, जन्मों के फ़ासले हैं ।
मुनासिब ना कोशिश, पास आने की,
दूर से ही निभते, मुहब्बत के मामले हैं ।
गुपचुप आना, अमावस की रातों में,
कोई देख ना सके, तू मेरे सामने है ।
तन्हाई का समन्दर, हर एक लम्हा,
कितने लम्हें, हम्हें तन्हा गुज़ारने हैं ।
याद ही सहारा , उड़ती ज़िन्दगी का,
पँख हो तभी तो, परिन्दों के मायने हैं ।
' रवीन्द्र '
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