Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मयखाना

 

ये कौन सा मयखाना है जहाँ साकी है ख़ूबसूरत मगर शराब नहीं,
जवाँ शब है, शबे हुस्न भी है मगर, मदहोश करे जो वो शबाब नहीं.


मयख़ाने तो और भी होंगें कुछ यहाँ , ले चल मुझे तू अब वहाँ,
जहाँ साकी हो तेरे रंग का , रहता हो रंगे -शबाब शराब में घुला.


ना हो रंज में पिलाने वाले, बैठ के पहलू में पिलायें ले ले के मज़ा.
उतरे ना मदहोशी बाद पीने के , पिलाने में भी हो पीने का नशा,


शब तो हो मगर स्याह काली, जुगनुओं, चाँद , तारों से ख़ाली,
ना हों अल्फाज़ , बयाँ हों बेताब अहसास खामोशियों की ज़ुबानी,


शबे - हुस्न हो आफताब ऐ परवर-दिगार तेरे हुस्न के ज़माल से,
मदहोश हो सारी कायनात तेरी, हर घडी इस मयख़ाने-शराब से.

 

 

 

'रवीन्द्र'

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