चार दिन का मेला,
पथिक फिर अकेला.
खेल ना कोई खेला,
देखा सब झमेला,
चार दिन का मेला,
पथिक फिर अकेला.
जिसने जहाँ धकेला,
मरता रहा अकेला.
चार दिन का मेला,
पथिक फिर अकेला.
लगता है अब बबेला,
ये जिन्दगी का मेला,
चार दिन का मेला,
पथिक फिर अकेला.
' रवीन्द्र '
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