नया ज़माना बदले ख़यालात हैं,
मशरूफ़ लोग छिपते अहसास हैं ।
पास हमारे ना कोई इफ़रात है,
दो घड़ी की बस ये मुलाकात है ।
ना चुप गुज़रे वो चंद लम्हात हैं,
आँखों आँखों में कुछ तो बात है ।
रवां हर शै है क्या कायनात है,
सुबह हँसती लगती सौगात है ।
दो घड़ी में हुई दुनिया आबाद है,
याद हर लम्हा तेरी मुलाकात है ।
' रवीन्द्र '
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