Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुलाक़ात

 

नया ज़माना बदले ख़यालात हैं,
मशरूफ़ लोग छिपते अहसास हैं ।

 

 

पास हमारे ना कोई इफ़रात है,
दो घड़ी की बस ये मुलाकात है ।

 

 

ना चुप गुज़रे वो चंद लम्हात हैं,
आँखों आँखों में कुछ तो बात है ।

 

 

रवां हर शै है क्या कायनात है,
सुबह हँसती लगती सौगात है ।

 

 

दो घड़ी में हुई दुनिया आबाद है,
याद हर लम्हा तेरी मुलाकात है ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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