ना थकती है, ना है रूकती बे -जान है ज़िन्दगी,
गर्म सेहरा में कारवाँ सी है परेशान है ज़िन्दगी,
इमारती जंगलों में भी आमोद का कोई वन होगा,
तलाश में लगी हुई उम्मीद का सफ़र ज़िन्दगी,
समंदर के ना बदलते नज़ारों में कोई बदल होगा,
शहर चूँकि ये जिंदा है, इसमें कोई तो फ़न होगा,
कुछ तो मिला, कुछ मिलने की आस है ज़िन्दगी,
खुदी में है थोड़ी सी बेखुदी की तलाश ज़िन्दगी.
मिलने में किसी वाकिफ से वो तपिश अब कहाँ ,
मिलती थी हर शाम जो दावतें लज़ीज़ ना यहाँ ,
बेवफाई की रोशनियों में असल ख़ाक ज़िन्दगी,
याद आता है वो अब लखनवी अंदाज़ ज़िन्दगी,
' रवीन्द्र '
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