Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुसाफ़िर

 

ठहर जा मुसाफ़िर, बता जायेगा कहाँ,
ज़िन्दगी जी ली है, ठौर पायेगा कहाँ ।

 

कौन है मुसव्विर, भरे रंग जीवन में,
बसेरा है यहीं पर, पता पायेगा कहाँ ।

 

अहसास नाजुक सा, बिखरे पलभर में,
मुकम्मल सा वो , भला पायेगा कहाँ ।

 

गुल में दिखता है, खिले रंग भर कर,
दीदार को उसके, भला जायेगा कहाँ ।

 

'रवि' धूप सा वो, लगता है रूह सा,
खुद ही सानी है, और पायेगा कहाँ ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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