ठहर जा मुसाफ़िर, बता जायेगा कहाँ,
ज़िन्दगी जी ली है, ठौर पायेगा कहाँ ।
कौन है मुसव्विर, भरे रंग जीवन में,
बसेरा है यहीं पर, पता पायेगा कहाँ ।
अहसास नाजुक सा, बिखरे पलभर में,
मुकम्मल सा वो , भला पायेगा कहाँ ।
गुल में दिखता है, खिले रंग भर कर,
दीदार को उसके, भला जायेगा कहाँ ।
'रवि' धूप सा वो, लगता है रूह सा,
खुद ही सानी है, और पायेगा कहाँ ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY