Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुश्किल

 

 

इंतज़ार करना था मुश्क़िल,
अब प्यार करना भी मुश्क़िल,
इकरार जो ना हुअा फिर ,
दीदार करना भी मुश्क़िल ।

 

बरकरार उनसे, रस्म-ए-वफ़ा,
इनकार करना था मुश्क़िल,
इज़हार होगा शाम-ओ-सहर,
ये क़रार करना भी मुश्क़िल ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

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