इंतज़ार करना था मुश्क़िल,
अब प्यार करना भी मुश्क़िल,
इकरार जो ना हुअा फिर ,
दीदार करना भी मुश्क़िल ।
बरकरार उनसे, रस्म-ए-वफ़ा,
इनकार करना था मुश्क़िल,
इज़हार होगा शाम-ओ-सहर,
ये क़रार करना भी मुश्क़िल ।
' रवीन्द्र '
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इंतज़ार करना था मुश्क़िल,
अब प्यार करना भी मुश्क़िल,
इकरार जो ना हुअा फिर ,
दीदार करना भी मुश्क़िल ।
बरकरार उनसे, रस्म-ए-वफ़ा,
इनकार करना था मुश्क़िल,
इज़हार होगा शाम-ओ-सहर,
ये क़रार करना भी मुश्क़िल ।
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