मिटने के लिए बनी हूँ , कहती है हर मुश्किल,
देख ले बस इक नज़र , समझ प्यार के क़ाबिल।
जो आते हैं वो बस , नज़र फेर के चले जाते हैं,
कहने भर के आशिक़ हैं , छोड़ कर चले जाते हैं।
बर्फ़ सा वज़ूद मेरा, आंचे मुहब्बत से पिघल जायेगा ,
डरा हो मगर जो खुद से, प्यार मुझसे क्या जताएगा।
वफ़ा में किसी की दम नहीं, हर दम मौजूद हूँ मैं ,
बनी तो मिटने को, पर मिटती नहीं परेशान हूँ मैं।
जो मिटा सके खुदी को, वही तो मुझसे वफ़ा करेगा,
लगन हो जिसमे सच्ची, वही मुझको फ़तेह करेगा।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY