Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नसीहत

 

यहाँ रोज़ मिलें ना, मिलने के मौके,
वो हर रोज़ पुकारे, पर रोज़ है रोके ।

 

फ़ुर्क़त में पाया, चिलमन को धो के,
रुखसत सब कुछ, कुछ लम्हा हो के ।

 

नज़र में हर सूं , इस जिगर के टोटे,
एक राह बुहारी, पर अब कोई रोके ।

 

नासाज़ तबियत औ' मिट्टी को ढ़ोके,
अब मिलना क्या, इस मंज़र पे रोके ।

 

बेकार नसीहत औ' उलफ़त के धोख़े,
मैं क्या न पाया, बस तुम को खोके ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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