Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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निजात

 

ज़िन्दगी को खो कर,
ज़िन्दगी को जीने की,
अज़ीब सी ये चाहत है,
निजात चाहतों से पाने की ।

 

 

एक सवाल सा उठा है,
हसरत जवाब पाने की,
क्यों होती ये चाहत है,
निजात चाहतों से पाने की ।

 

 

ख़्याल मिट न जाये,
ज़रूरत आजमाने की,
बसी बशर में चाहत है,
निजात चाहतों से पाने की ।

 

 

दिखता नहीं है पहरा,
फ़ितरत क़ैद खाने की,
रखनी ताब में है चाहत,
निजात चाहतों से पाने की ।

 

 

एक तू ही है हक़ीकत,
बाकी है बात मैख़ाने की,
तेरे वास्ते ही चाहत है,
निजात चाहतों से पाने की ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

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