एक यही मुश्किल, बस सरल नहीं होती,
मुहब्बत में हमसे, बस पहल नहीं होती ।
कमी सितारों की, इस कमसिन रात में,
ये चाँद तन्हा औ, शब चहल नहीं होती।
लाख हों जलवे तेरे, ऐ महफिले-तन्हाई,
समझो बिन वफ़ा, मन बहल नहीं होती ।
मानिंद सावन कोई , हर दम बरसता है,
दीद मोहताजे-वफ़ा, एक रकम नहीं होती।
कमी यादों की या, बेनयाज़ी-ए-इश्क़ की,
बेरूखी इस दिल की, अब सहन नहीं होती ।
एक यही मुश्किल, बस सरल नहीं होती,
मुहब्बत में हमसे , बस पहल नहीं होती ।
' रवीन्द्र '
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