मुख़्तलिफ़ आज तेरी, हर बात नज़र आती है,
हो इशारों में अग़र, अदा खास नज़र आती है ।
चूमता है जमीं को, गगन आगोश में भर कर,
ख़ामोश मदहोश ये, कायनात नज़र आती है ।
जाना है तन्हाई को, इश्क़ मुहब्बत की ड़गर,
मिले ब- मुश्किल वो, तक़दीर नज़र आती है ।
तुम मुन्तज़िर रहे, हम परेशां मशरुफ़ियत से,
ख़्वाबों में मुमक़िन, मुलाक़ात नज़र आती है ।
दिल के आशियां में, एक कोना भी नहीं छोड़ा,
जिधर भी झाँका, तेरी पहचान नज़र आती है ।
मुख़्तलिफ़ आज तेरी, हर बात नज़र आती है,
हो इशारों में अग़र, अदा खास नज़र आती है ।
' रवीन्द्र '
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