ऐहसास हुआ जबसे, दिल की पाकीज़गी का,
ऐतराज़ हुआ हमको, दिल की दीवानगी का ।
ये ना सोचा था कभी, कि इस तरह से टूटेगा,
नहीं तो शिफ़ा करते, दिल की नासाज़गी का ।
आख़िर ये क्या बला है, बताया गया जो होता,
मुहब्बत सबब न होती, दिल की बर्बादगी का ।
चाहत नहीं थी इसको, लुटना मग़र मंज़ूर था,
आलम अजीब सा था, दिल की बेचारगी का ।
तरसता रहे ये हरदम, कहीं चैन इसे न आया,
सुकूँ भी सबब बनेगा, दिल की नाराज़गी का ।
इश्क़े- सुखन से बेहतर, पाकीज़गी ज़िन्दगी में,
क्या करते वरना 'रवि', दिल की आवारगी का ।
' रवीन्द्र '
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