हर हाल में अपना ही, अरमा-ए-जिगर देखा,
जिस किसी को देखा, झुकाये सर को देखा,
सिर्फ़ इन्सां ही है जो, परवाह करता है तेरी,
परेशां मज़बूर कभी, परिन्दों को नहीं देखा ।
' रवीन्द्र '
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हर हाल में अपना ही, अरमा-ए-जिगर देखा,
जिस किसी को देखा, झुकाये सर को देखा,
सिर्फ़ इन्सां ही है जो, परवाह करता है तेरी,
परेशां मज़बूर कभी, परिन्दों को नहीं देखा ।
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