Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पत्ता-पत्ता

 

मिट्टी खाद पानी और हवा है वही,
पत्ता-पत्ता है, मगर जुदा फिर भी.

 

बीज एक, जिस से उपजे हैं सभी,
गंध और रूप , है जुदा फिर भी.

 

मंजिल लय की , सब की है वही,
ढंग हिलने का , है जुदा फिर भी.

 

टूटेगें कुछ कल, कुछ टूटें हैं अभी,
तकदीर में लिखा , है जुदा फिर भी.

 

देखते ये तमाशा , यहाँ लोग सभी,
अंदाज़ समझने का, है जुदा फिर भी.

 

मिट्टी खाद पानी और हवा है वही,
पत्ता-पत्ता है, मगर जुदा फिर भी.

 

 

' रवीन्द्र '

 

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