मिट्टी खाद पानी और हवा है वही,
पत्ता-पत्ता है, मगर जुदा फिर भी.
बीज एक, जिस से उपजे हैं सभी,
गंध और रूप , है जुदा फिर भी.
मंजिल लय की , सब की है वही,
ढंग हिलने का , है जुदा फिर भी.
टूटेगें कुछ कल, कुछ टूटें हैं अभी,
तकदीर में लिखा , है जुदा फिर भी.
देखते ये तमाशा , यहाँ लोग सभी,
अंदाज़ समझने का, है जुदा फिर भी.
मिट्टी खाद पानी और हवा है वही,
पत्ता-पत्ता है, मगर जुदा फिर भी.
' रवीन्द्र '
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