वो यक़ीनन हमें कमतर समझते हैं,
जिनको अमूमन हम सलाम करते हैं ।
तारीफ़ उस नर्गिसे-चश्म गहराई की,
जिसका अक्सर हम कलाम करते हैं ।
बुलाए से महफ़िल में हरगिज़ नहीं आते,
तन्हाई में जिनका जलवा बयान करते है।
रुसवाई मिलती है , अक्सर ज़माने में,
मुहब्बत का अपनी जो गुमान करते है।
ठुकरा दिया एक बार तो खुदा - हाफिज ,
मुहब्बत का अपनी भी कुछ मान करते हैं ।
गैर नहीं कोई भी , सब तो हैं यहाँ अपने,
ईमान और मुहब्बत का ये पयाम करते हैं ।
' रवीन्द्र '
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