Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रण

 

- The commitment

 

 

 

है यहाँ जैसी . . ये दुनिया,
करनी मुझको स्वीकार नहीं,
देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

आशाएँ हैं, पल पल झरतीं,
इसमें जीवन रस संचार नहीं,
कीमत पा कर, बेचूँ मैं सपने,
आता मुझको ये व्यापार नहीं ।

 

देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

मेरे सपनों में , तेरा साहिल है,
क्या तेरा कुछ सरोकार नहीं,
सपनें भी तो , होते है अपने,
अपनों को क्या अधिकार नहीं ।

 

देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

वर्तमान की , पूँजी पा कर,
कह, क्या कुछ मेरे पास नहीं,
ऋतु बिन, बरस रहा है सावन,
सागर क्यों , सारा पास नहीं ।

 

देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

कुदरत की , बगिया में देखो,
बहता हर क्यारी में प्यार नहीं,
कहते हैं माली की बे-परवाही,
दुश्मन हैं , खर - पतवार नहीं ।

 

देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

हर पल है, यहाँ मोती के जैसा,
हाथ बढ़ा लें, होता बेकार नहीं,
मनके मनके में, बहता जीवन,
पुरुषार्थ बिना जग संसार नहीं ।

 

देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

ज्ञान - वैराग्य, बहुत पा लिया,
ले भाव भक्ति, अभिमान नहीं,
अब मेरा कर्म ही, मेरा इष्ट हो,
करना मुझको, है विश्राम नहीं ।

 

देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

नींद नहीं अब , आती मुझको,
जगती आँखों से , देखूँ सपने,
सपने मुझसे, प्रण -दान माँगते,
क्या कह दूँ , मुझमें प्राण नहीं ।

 

देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

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