Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रणाम

 

 

नया चोला
नया काम,
नयी सुबह
नयी तान।
उम्र थोड़ी
कईं काम
मात्र योग्य
कर्म थाम।
किया जितना
हो निष्काम
भूल कर
नया पहचान।
हरपल होती
नयी उत्पत्ति
नया सृजन
नया विधान।
देह सुदेह
विदेह जान
नित नूतन
नये प्राण।
मंजिल वही
नये मुक़ाम
सतत निरंतर
प्रभु ध्यान।
नयी सुबह का
यही प्रणाम।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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