अवचेतन मन की ये त्रास है,
अव्यक्त का सतत प्रयास है,
हुताश को हव्य की प्यास है,
मिलन की प्रियतम से आस है।
निर्जीव उदासी तत्त्व सकल है,
प्रेरक एक जिसके सब सेवक हैं,
शक्ति उसकी करती भ्रमण है,
इच्छा से जिसकी प्राणी पन है ।
ज्ञान शिखा जब हियप्रकाश है,
तिमिरकोष की पिघल आस है,
निर्मल उर और धवल श्वास है,
मद मन बुद्धि सब विलास है ।
सुकृत्य नीर शीतल श्रीवास है,
अन्तर उर का अनंत आकाश है,
पंच - शरी का विफल प्रयास है,
श्रद्धा संतोष का मृदुल भास है ।
नित्य समर्पित सर्वस्य सुमन है,
सुंदर मन करता नित-स्तवन है,
सकल जड़ तब सजीव चेतन है,
प्रति-आश्रित चेतन अव-चेतन है।
' रवीन्द्र '
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