परेशान हूँ मग़र,
तुझे बताऊँ कैसे.
जज्बात बेताब हैं मग़र,
उन्हें दिखाऊँ कैसे.
परेशान हूँ मग़र,
तुझे बताऊँ कैसे.
अहसास भभकता सा ,
दिल में उठता हुआ,
दबाने से जो भड़के,
उसे बुझाऊँ कैसे.
परेशान हूँ मग़र,
तुझे बताऊँ कैसे.
अजनबी सी एक सूरत,
जहन में उभरती है,
पल भर भी न टिकती है,
दिल में उसे बसाऊँ कैसे.
परेशान हूँ मग़र,
तुझे बताऊँ कैसे.
लफ़्ज़ों में दम है कहाँ,
जज्बात पड़े कमज़ोर ज़रा,
आवाज़ सुने कौन यहाँ,
बात फिर बताऊँ कैसे.
परेशान हूँ मग़र,
तुझे बताऊँ कैसे.
मंजिल मेरी कुर्बत की है,
साथ तू भी हमसफ़र है,
राह मग़र मुश्किल बड़ी है,
ये तुझे समझाऊँ कैसे.
परेशान हूँ मग़र,
तुझे बताऊँ कैसे.
' रवीन्द्र '
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