Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राबता

 

अक़सर ये दिल, तब टूटता है,
राबता रब से, जब छूटता है ।

 

 

मुफ़ीद लगती , सदा ज़माने की,
आवाज़ दिल की, कहाँ पूछता है ।

 

 

तेरी रज़ा में, इस दिल की रज़ा,
चाहत तेरी है, ये कब रोकता है ।

 

 

दिल जानता है, रब की रज़ा भी,
हौले से मगर ये, तुझे टोकता है ।

 

 

यक़ीनन रहेगी, निस्बत ये रब की,
आसमां जमीं को, कहाँ छोड़ता है ।

 

 

अक़सर ये दिल, तब टूटता है,
राबता रब से, जब छूटता है ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

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