Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रंग बरसे

 

फागुन में बरसे प्रेम बदरिया,
भीगा मन मोरा बीच डगरिया,
लाज की छूटी आज चुनरिया,
प्रीत निभाई मैंने रंग ले सांवरिया ।

 

 

डोले मोरा मनवा, लचके कमरिया,
खाये हिचकोले, तन की गगरिया,
लागी नज़र तेरी तिरछी कटरिया,
प्रीत निभाई मैंने रंग ले सांवरिया ।

 

 

इत उत डोलूँ मैंने खाई भांगरिया,
तन मेरा झूमे ऐसे भँवर फुलरिया,
काहे चढ़े कान्हा मोरी सोच अटरिया,
प्रीत निभाई मैंने रंग ले सांवरिया ।

 

 

अंग अंग भीगे मोरा, पिचके जो नजरिया,
रंग न छूटे चाहे अब रोये रंगरिया,
तेरी ही बोली बोले सारी नगरिया,
प्रीत निभा दी मैंने, रंग ले सांवरिया ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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