खिड़की के
खुले पट्ट,
भीतर आई,
बिलकुल निर्बाध,
एक नदी,
किरणों की,
भरे इसमें
रश्मिकन
अनंत, अगाध
स्वयं में पूर्ण
एक सृष्टि,
रश्मियों की,
उर्जा कणों की.
तरंगों की
गति समान,
विविध गतिमान
प्रति एक तरंग
अभिन्न अंग
तरंगदैधर्य अलग
क्षमताएं विलग.
सभी के संग
ऊर्जाओं के कण
जो बिखेरे धूप,
धरे विविध रूप.
इन्द्र निषंग के
सप्त रंग,
हुए खंड खंड
विभिन्न अंश,
फिर नया रूप,
नयी गंध.
ऊर्जा कण गिरते,
होते विनष्ट
फिर नए गिरते
रश्मि कण बिखरते
करते परिवर्तन
ऊर्जा अंत पर्यंत.
यही तो है
जीवन चक्र
रश्मि कणों का
चक्र जीवन और मृत्यु का,
नियम शाश्वत
प्रकृति का.
बंद हुए कपाट,
सृष्टि समाप्त,
फोटोनों की,
किरणों की,
रवि - अंश कणों की
और सभी की.
'रवीन्द्र'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY