Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रस्म -ए- ज़िन्दगी

 

 

बदलेंगें रुख़ कभी, अभी दीदार की हसरत है,
बहुत फुर्सत है अभी, करके इन्तज़ार देखेगें ।

 

 

नाज़ुक बहुत दिल-ए-सनम, आह से दुखता है,
आह को साँसों में, अभी करके शुमार देखेंगें ।

 

 

हर लफ्ज़ क़यामत है , मुहब्बत में ज़ुबां का,
करके इश्क़ बयानी, जुबाने- दिल से देखेंगें ।

 

 

तलाश हमसफ़र की, या कारवां-ए-सफ़र की,
बेदार हुऐ सवालों को, क़रार-ए-दिल से देखेंगें ।

 

 

बुझ रही है लौ , इस रस्म -ए- ज़िन्दगी की,
मिली ग़र कोई दुआ, जलके फिर से देखेंगें ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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