Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रुसवाई

 

गिरता है अगर, तो गिरने दो इसे,
शिकवा ज़माने का, अब दूर करें ।

 

संभाला अब तक मिला क्या सिला,
माना पुराना बहुत, वफादार है ये ।

 

वफ़ा ने इसकी, बाँध रखी है गिरह,
कराता है हिमाक़त, सौदाई की तरह ।

 

गैरों की निगाहों में, हम मगरुर हुए,
अपनों की ज़िन्दगानी से हम दूर हुए ।

 

ज़माने में नामे - संगदिल मशहूर हुए,
मगर अब थक कर, हम चूर चूर हुए ।

 

गिरता है ग़र ग़रूर, तो गिरने दो इसे,
ख़त्म होगी रुसवाई, ख़त्म कर के इसे ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

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