गिरता है अगर, तो गिरने दो इसे,
शिकवा ज़माने का, अब दूर करें ।
संभाला अब तक मिला क्या सिला,
माना पुराना बहुत, वफादार है ये ।
वफ़ा ने इसकी, बाँध रखी है गिरह,
कराता है हिमाक़त, सौदाई की तरह ।
गैरों की निगाहों में, हम मगरुर हुए,
अपनों की ज़िन्दगानी से हम दूर हुए ।
ज़माने में नामे - संगदिल मशहूर हुए,
मगर अब थक कर, हम चूर चूर हुए ।
गिरता है ग़र ग़रूर, तो गिरने दो इसे,
ख़त्म होगी रुसवाई, ख़त्म कर के इसे ।
' रवीन्द्र '
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