सिला है कुछ पुराने सवाबों का या,
वो खुदा है, जिसने इन्सां बना दिया ।
सलोना सा जहां जिसमें मकां बना दिया,
आने औ' जाने का सिलसिला बना दिया ।
ना हो सके आबाद, मारे हैं गुज़रे वक़्त के,
मुताबिक़ माजी के मुश्तकबिल बना दिया ।
बे-खुदी में जाने क्या क्या कर गए गुनाह,
नादाँ समझ के फिर भी उसने भुला दिया ।
क्या दम है उसके ख्याल और जज्बात में,
गम उठाने को हमने उसे भी भुला दिया ।
दिया जो भी उसने समझी रहमत उसकी,
लगता नहीं कम, सारा जीवन लुटा दिया ।
' रवीन्द्र '
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