Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सदा संग हम चलें

 

आ कदम दो कदम, फिर हम संग चलें,
सरगम के स्वरों से धुन इक नयी चुनें,
प्रेम के शब्द खोजें, गीत माधुर्य का गुनें,
साज सत्य के सजाएँ, राह ज़िन्दगी की चलें.

 

टिकते नहीं हैं रेत पर, क़दमों के सभीं निशां,
अतीत के पृष्ठ पलटें, कुछ सुनहरे पल चुनें,
ज़िन्दगी की ताल बदलें, राग प्रेम का सुनें,
आ कदम दो कदम, फिर हम संग चलें.

 

गुज़र ही जाते हैं , वक्त के ये इम्तिहान,
महक रही हर फिज़ा, अहसास का मधु पियें,
मेरे तेरे के भाव बदलें, पाठ मधुरता का पढ़ें,
आ कदम दो कदम, फिर हम संग चलें.

 

रुक गया है समय का दरिया कुछ पलों के लिए,
गिलों से अवकाश लेके, नज़दीकियों के क्षण चुनें,
वक़्त की इस शाख पर इक नया आशियाँ बुनें,
आ कदम से कदम मिला कर हम सदा संग चलें.

 

 

'रवीन्द्र'

 

 

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