कहीं राग है, तो कहीं द्वेष है,
नहीं प्रेम तो, सिर्फ क्लेश है ।
दुःख है, दर्द का समावेश है,
जोश या गुरुर का आवेश है ।
इल्म है, हर मुल्क शरीफ़ है,
ना कोई, गुनाह में शरीक़ है ।
लोभ है या ज़ब्र ही अज़ीज है,
इंसा तेरा, हाल भी अजीब है ।
है गुफ़्तगूं, जमीं हो या आसमां,
सफ़र यहाँ, कोई ना महफूज़ है ।
सभी यात्रियों और
उनके शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना के साथ,
' रवीन्द्र ',
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