पल पल बिखरते,
फ़लक के सितारे,
कोई ना खिवैय्या,
सब चाहत के मारे ।
हैं चन्द लम्हों के,
सब हसीं ये नज़ारे,
बशर फिर से होगी,
ग़मे-हिज़्र के सहारे ।
दिखे जो ये दुनिया,
ख़्वाब की अमानत,
मिलती तसव्वुर में,
है असल जो बहारें ।
डूबी थी नैय्या,
मिले फिर किनारे,
चाहत के दम से,
तेरी याद के सहारे ।
' रवीन्द्र '
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