Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सहारे

 

पल पल बिखरते,
फ़लक के सितारे,
कोई ना खिवैय्या,
सब चाहत के मारे ।

 

 

हैं चन्द लम्हों के,
सब हसीं ये नज़ारे,
बशर फिर से होगी,
ग़मे-हिज़्र के सहारे ।

 

 

दिखे जो ये दुनिया,
ख़्वाब की अमानत,
मिलती तसव्वुर में,
है असल जो बहारें ।

 

 

डूबी थी नैय्या,
मिले फिर किनारे,
चाहत के दम से,
तेरी याद के सहारे ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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