हर हैवान के सिर पर कफ़न होगा,
जुर्म तब इस समाज से ख़तम होगा,
पापी भी था इनमें मगर एक पक्का,
अफ़सोस निकला वो उम्र का कच्चा ।
उम्मीद बाकी कि शायद वो सुधरेगा,
समाज का सभ्य चेहरा तब निखरेगा,
बीज पाप का दिलो-जेहन में न होगा,
जहां से निशां-ज़ुल्म तभी ख़तम होगा ।
बुजुर्ग, स्त्री, बाल, विद्वान और रोगी,
हैं निर्बल और समाज पर आश्रित भी,
भय इनके हृदय में जब कमतर होगा,
मान देने से समाज स्वयं निर्मित होगा ।
वक़्त लगा जितना वो लगता मुनासिब,
खूब किया है, न्याय पालिका ने फैसला,
यक़ीनन फ़ैसले का दूरगामी असर होगा,
हासिल दामिनी को नया हौसला होगा ।
' रवीन्द्र '
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