टकरा कर साहिल से, बस चूर हो जाना,
ज़रूरी है मौज़ का, ज़रा मस्ती में आना ।
तमन्नायें दबी थीं, अब जवां हो रहीं हैं,
कहाँ ले जा रहीं है , मुश्किल है बताना ।
हूक सी उठती हैं , ईज़ा साथ ले कर,
मुमकिन नहीं है, बस उन को दबाना ।
एक वही हसरत है, अब बेदार नहीं होती,
दौरे- मशरुफ़ियत, जिसे पड़ा था सुलाना ।
बहुत शुक्रिया तेरा, आलम -ए- बेपरवाही,
किया तेरे भरोसे , अब सब को भुलाना ।
पुर- सुकूं दिले- बेताब, कब तक ना होगा,
बहलना ये सीखे, या साहिल से टकराना ।
( ईज़ा = Pain, दर्द ; पुर- सुकूं = full of satisfaction, शान्त )
' रवीन्द्र '
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