Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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साहिल औ' दिल

 

टकरा कर साहिल से, बस चूर हो जाना,
ज़रूरी है मौज़ का, ज़रा मस्ती में आना ।

 

 

तमन्नायें दबी थीं, अब जवां हो रहीं हैं,
कहाँ ले जा रहीं है , मुश्किल है बताना ।

 

 

हूक सी उठती हैं , ईज़ा साथ ले कर,
मुमकिन नहीं है, बस उन को दबाना ।

 

 

एक वही हसरत है, अब बेदार नहीं होती,
दौरे- मशरुफ़ियत, जिसे पड़ा था सुलाना ।

 

 

बहुत शुक्रिया तेरा, आलम -ए- बेपरवाही,
किया तेरे भरोसे , अब सब को भुलाना ।

 

 

पुर- सुकूं दिले- बेताब, कब तक ना होगा,
बहलना ये सीखे, या साहिल से टकराना ।

 

 

( ईज़ा = Pain, दर्द ; पुर- सुकूं = full of satisfaction, शान्त )

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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