समन्दर का कोई साहिल न होता,
नमक जरा सा गर घुला ना होता ।
जरा सी गर कोई तकलीफ कर ले,
सागर के जल से गगरिया भर ले,
रहे ना प्यासा जतन जो कर ले,
मन को इसके भी थोडा सा पढ़ ले ।
ख़ता साहिल की है ना समंदर की,
कमी तू प्यासे - रहगुज़र समझ ले ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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