यूँ ना हसरतें , हज़ार रखते हैं,
बस एक, तुमसे प्यार करते हैं ।
हया है, या रवायते - इश्क़,
खुल के, ना इक़रार करते हैँ ।
शौक यूँ हैं, तमाम दुनिया में,
ख़ास ये, ना इन्कार करते हैं ।
है इल्म, तेरी भी तबीयत का,
रह खामोश, इन्तेज़ार करते हैं ।
वाज़िब, शिक़ायत ज़माने की,
यकायक, ये इज़हार करते हैं ।
हो गयी है, नदारद बाज़ारों से,
मुमकिने- दिल, बहार रखते हैं ।
हम भी शौक़-ए-ख़राब रखते हैं,
बस एक, तुम से प्यार करते हैं ।
' रवीन्द्र '
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