Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शौक़

 

यूँ ना हसरतें , हज़ार रखते हैं,
बस एक, तुमसे प्यार करते हैं ।

 

हया है, या रवायते - इश्क़,
खुल के, ना इक़रार करते हैँ ।

 

शौक यूँ हैं, तमाम दुनिया में,
ख़ास ये, ना इन्कार करते हैं ।

 

है इल्म, तेरी भी तबीयत का,
रह खामोश, इन्तेज़ार करते हैं ।

 

वाज़िब, शिक़ायत ज़माने की,
यकायक, ये इज़हार करते हैं ।

 

हो गयी है, नदारद बाज़ारों से,
मुमकिने- दिल, बहार रखते हैं ।

 

हम भी शौक़-ए-ख़राब रखते हैं,
बस एक, तुम से प्यार करते हैं ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ