Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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' संसार '

 

करते हैं जिस पे,
वो जाँ तक निसार,
चाहत का मारा,
है ये सारा संसार ।

 

कहने को इसमें,
नहीं कोई सार,
चाहें फिर भी वो,
रखना इख़्तियार ।

 

समझे ना मतलब,
समझायें तजुर्बेकार,
मालिक है इसका,
मुहब्बत का निगार ।

 

होता न सच मुच,
वफ़ा का इज़हार,
मरते है गिर कर,
यूँ परवाने हज़ार ।

 

अमल में हो वफ़ा,
तो मिलता संसार,
थोड़ा सा हो सब्र,
और ज़रा इंतज़ार ।

 

चाहत बस उसकी,
जो मालिक संसार,
धीरे से आ जाये,
ग़र जीवन में प्यार ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

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