दंश तेरा कितना प्रबल,
कर ले इसका आकलन,
फरेब फिर कर चयन,
वार कर उस पर सदम.
सत्य सीता हुआ हरण,
खोज उसे घर और वन,
याद कर राम औ लखन,
मुक्त कर दशग्रीव बंधन.
बना स्वयं हृदय पावन,
हत विकार संशय शमन,
सोच मिथ्या बसी है मन,
दंश-सत्य का दे इसे प्रथम.
परं सत्य का सदा स्मरण,
रवि- ह्रदय प्रकाशित मन,
शेष रहे ना कोई दूषण,
कोमलता का भाव सघन.
नहीं नागफनी की चुभन,
ना झूठ की लगे तपन,
रहे पल्लवित सत्यसुमन,
हो प्रफुल्लित अब ये मन.
मात्र सत्य का कर वदन,
स्वयं झूठ होगा दफ़न,
सत्य सुधा का कर वमन,
महकेगा ये तेरा चमन.
रवीन्द्र
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