थक गया भटकता मन,
झूठ की सब ओर तपन,
नागफणी सी ये चुभन,
सत्य का करती आह्वाहन
झूठ के घर हो अमन,.
गुलज़ार हो कैसे चमन,
क्रांति को हो अब नमन,
बेचैन हुआ ये मेरा मन.
नागफणी पे ड़ाल कफ़न,
उठा अपने फ़न का फन,
लेके साँस भर फुंफकार,
कर सत्य का विष वमन.
कटु सत्य का विष वमन,
हलाहल सत्य का गरल ,
शिव किया जिसका धरन,
कंठ नील कल्याण करन.
जग झूठ से संतप्त है,
मिथ्याचार से ये त्रस्त है,
जितने भी सब भ्रष्ट हैं ,
दे इन्हें फ़न का नमन.
पास तेरे लेखन का फ़न ,
उठा दे असत्य आवरण,
उलट दे सच का गरल,
मरे झूठ हो सत्य दर्शन.
जन्म सत्य का हो परम,
राग द्वेष अब हो ख़तम,
सर्वत्र प्रवाह हो प्रेम प्रबल,
सार्थक हो कृष्ण जन्म.
हरे कृष्ण !
रवीन्द्र
मुंबई
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