उभरते अहसास
चुनिंदा अल्फाज़,
पेशे - खिदमत
दबे जज़बात ।
पाक़ साफ़गोई
थोड़ी सी हयाई,
लम्बी तन्हाई,
फिर खुदाई ।
कभी बेवफ़ाई
फिर जुदाई ,
कुर्बत की बात,
वस्ल की रात ।
जुमलों की बारात
जिगर से निकल
ज़ेहन में संभल ,
जुबां पे आई ।
इतनी सी बात,
नहीं कुछ खास,
करो मालूमात,
ज़माने में क्यों,
शोहरत है पाई,
शायरी कहलाई ।
' रवीन्द्र '
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