सावन की ऋतु आई है,
सखी सावन की ऋतु आई है.
मौसम ने ली अंगड़ाई है,
काली सी बदरी छाई है,
सागर ने ठानी मचलाई है,
तट पर भी रौनक आई है.
सावन की ऋतु आई है,
सखी सावन की ऋतु आई है.
संगी साथी भी उमड़ पड़े,
उर में सभी उमंग भरे,
शीतल कोमल सा स्पर्श करे,
वो पवन सुहानी आई है.
सावन की ऋतु आई है,
सखी सावन की ऋतु आई है.
छतरी छाते भी निकल पड़े,
सखियों के मन मचल गए,
कुछ कहने में शरमाई है,
सजना की याद सताई है.
सावन की ऋतु आई है,
सखी सावन की ऋतु आई है.
कुछ अँखियाँ तो बरस पड़ी,
जो बिछड़ी थी वो तड़प पड़ी,
जो ना समझे वो हरजाई है,
कैसी मुश्किल ये तन्हाई है.
सावन की ऋतु आई है,
सखी सावन की ऋतु आई है.
'रवीन्द्र',
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