Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सावन की लगन

 

भीगी सी अलकें भीगा सा बसन
रिम -झिम बरसे घन श्यामल,
सनन सनन बहे ठंडी पवन
लग ही गई सावन की लगन.

 

सोंधी सी महक मिट्टी की तपन
अब आस जगी बुझने की अगन,
बयार बही पर मिटती ना जलन,
मदहोश करे ये सावन की लगन.

 

रुनझुन करती पायल की झनन,
कहते हैं नयन सजनी के सजल,
ना करना सजन परदेस गमन,
यूँ गरज बरस सावन की लगन.

 

अश्क बहे चंचल मन हो विकल,
घन घोर घटा,मग जल में मगन,
बिन रोके रुके,सजनी का सजन,
सजनी देती दुआ, सावन की लगन.

 

महि प्यास बुझी मिटी सारी थकन,
सजनी का हुआ अब सजना से मिलन,
तन भीग गया , मिटी मन की तपन,
है उपकार तेरा, ऐ सावन की लगन.

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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