Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सावन

 

बरस ले ऐ सावन
रिम - झिम बरस ले,

 

मेरे मन के आँगन से
जी भर के उमस ले ।
बरस ले ऐ सावन
रिम - झिम बरस ले,

 

बहार फुहारों की
हलकी सी उमंग ले ,
रहे जरा लम्बी
जीवन गुज़र ले ।

 

बरस ले ऐ सावन
रिम - झिम बरस ले ।

 

अँधेरे अमावस के,
हो दूर बह के,
जीवन की सरिता
उजालों को भर ले ।

 

बरस ले ऐ सावन
रिम - झिम बरस ले ।

 

बादल की चादर
सूरज को ढ़क ले,
दुःख की अगन भी
सुखों से शमन ले ।

 

बरस ले ऐ सावन
रिम - झिम बरस ले ।

 

शब्दों की रिमझिम
भावों का रस ले,
मधुर सी कविता
'रवि' भी रच ले ।

 

बरस ले ऐ सावन
रिम - झिम बरस ले ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

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