Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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साया

 

साथ वीराना सा, तनहा नहीं लगता,
लगे अजनबी सा, अपना नहीं लगता ।

 

बसे कोई दिल में, गिला नहीं करता,
मैं साँस भरता , वो साँस नहीं भरता ।

 

है इलज़ाम मुझ पे, दे देगा वो गवाही,
है पहरा-ए-निगाह, गुनाह नहीं लगता ।

 

जुडो तो है समंदर, नहीं तो बूंद तनहा,
ये सोच अलहदा है, साफ नहीं लगता ।

 

पनाह नूर की है , फिर पलेगा क्यूँ अन्धेरा,
'रवि' सफ़र में तन्हा, संग साया नहीं चलता ।

 

 

' रवीन्द्र '

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