साथ वीराना सा, तनहा नहीं लगता,
लगे अजनबी सा, अपना नहीं लगता ।
बसे कोई दिल में, गिला नहीं करता,
मैं साँस भरता , वो साँस नहीं भरता ।
है इलज़ाम मुझ पे, दे देगा वो गवाही,
है पहरा-ए-निगाह, गुनाह नहीं लगता ।
जुडो तो है समंदर, नहीं तो बूंद तनहा,
ये सोच अलहदा है, साफ नहीं लगता ।
पनाह नूर की है , फिर पलेगा क्यूँ अन्धेरा,
'रवि' सफ़र में तन्हा, संग साया नहीं चलता ।
' रवीन्द्र '
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