Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शांति पर्व

 

इस दो घडी के शांति पर्व में ,

सभी मौन थे, खामोश थे,

 


कोई कुछ नहीं बोला,

स्कूल की घंटी भी नहीं,

मोबाईल के रिंग टोन भी,

बस कुरमुरा कर रह गयी,

 


सरकारी आदेश था,

सब मौन रहेगे,

कोई किस्सी से कुछ नहीं बोलेगा ,

जो जैसा कर रहा है , करता रहे,

जहा जो खड़ा है, खड़ा रहे,

बुत की तरह,

निष्क्रियता अब अभिशाप नहीं,

सक्रियता अनुशाषित है,

 


मात्र दो मिनिट का अवकाश मिला है,

फिर सब वैसा ही चलेगा ,

वर्ष भर केलिए,

इस दो घडी के मौन व्रत में,

निः शब्द रहना जरूरी है,

यह सरकारी आदेश है,

अनुपालन जरूरी है,

 


जो सारी उम्र जागता रहा,

सबको जगाता रहा,

जो मुर्दो की तरह मौन थे ,

उसको भी बोलना सिखाता रहा,

जिन्दादिली जिसका जूनून थी ,

आजादी की मशाल थी,

सलाखों के पीछे से,

बंदी गृहों के झरोखों से,

निरंतर आवाज लगता रहा,

सत्य को बुलाता रहा ,

 


उसी को याद में, आज ख़ामोशी है ,

शांति है, संवेदना है ,

आज हम आश्वस्त है ,

निर्भीक और निश्चिंत है,

उस की आवाज मर गयी है,

उस की जिन्दादिली ,

अब प्रिय वादिता में विलीन है ,

 


अतः अब सब शांत रहें ,

ख़ामोशी ही वतन परस्ती है,

दो घडी की ही क्यों ,

वर्ष भर की शपथ ले,

और अब शांत रहे,

सुनिश्चित करे शांति,

शांति, ॐ शांति.

 


रवीन्द्र

 

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